कैसे एक गरीब लड़के ने बनाई Rolls-Royce | Rolls-Royce के मालिक हेनरी की प्रेरणादायक कहानी

Rolls-Royce history | Henry Royce biography

ऑटोमोबाइल इतिहास में, Rolls-Royce का नाम प्रतिष्ठा और विलासिता का प्रतीक है। लेकिन इस चमकदार ब्रांड के पीछे एक असाधारण कहानी छिपी हुई है – संघर्ष, संकल्प और अदम्य महत्वाकांक्षा की। कल्पना कीजिए, एक गरीब लड़का जो गरीबी में जन्मा, जिसने अपनी परिस्थितियों से परे सपने देखने की हिम्मत की। यह केवल एक ब्रांड की कहानी नहीं है; यह एक ऐसे व्यक्ति की गाथा है जिसने अपनी विनम्र शुरुआत को ऑटोमोबाइल की उत्कृष्टता के शिखर में बदल दिया।

इस प्रेरणादायक यात्रा में आपका स्वागत है, जहाँ हम जानेंगे कैसे एक गरीब लड़के ने Rolls-Royce की नींव रखी। यह कहानी न केवल आपकी सोच को बदल देगी, बल्कि आपको भी अपने सपनों को पूरा करने की प्रेरणा देगी। पढ़ें और जानें इस अद्भुत सफर की पूरी कहानी।

एक ऐसा लड़का जिसके पास रहने को घर नहीं था, खाने को खाना नहीं था। जिसके पिता का बिज़नेस बर्बाद हो गया और कर्ज में डूबने से चिंता के कारण उनकी मौत हो गई। आगे चलकर यही लड़का दुनिया की सबसे महंगी गाड़ी बनाता है। यहाँ तक कि उसकी माँ ने उसे खुद से अलग कर दिया और कहा – मैं तुम्हें अपने साथ नहीं रख सकती, मेरे पास पैसे नहीं हैं, मेरे ऊपर बहुत कर्ज है। यह लड़का न तो स्कूल जा पाया न ही कभी कॉलेज जा पाया। लेकिन आगे चलकर न ही उसने कॉम्प्लेक्स इंजन बनाया बल्कि हवाई जहाज के इंजन तक बनाए। इस बालक का नाम फ्रेडरिक हेनरी रॉयस था जो Rolls-Royce के संस्थापक हैं।

जिसने केवल 2000 रुपये से Rolls-Royce को शुरू किया और आज जिसकी वैल्यूएशन 4 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा है। यहाँ तक कि आज उनके एक कार की कीमत 200 करोड़ से ज्यादा है।

हेनरी का जन्म 27 मार्च 1863 को इंग्लैंड के एक छोटे से गाँव में हुआ था और वह अपने 5 भाई-बहनों में सबसे छोटे थे। हेनरी के पिता एक आटा चक्की चलाते थे जो उन्होंने किराए पर लिया हुआ था। लेकिन लगातार नुकसान के कारण वे उस चक्की का किराया भी नहीं दे पा रहे थे, जिससे उन्हें अपने आटे की मिल को बंद करना पड़ा। कुछ समय बाद उनकी पूरी फैमिली काम ढूँढ़ने के लिए लंदन में शिफ्ट हो गई। लेकिन उन पर पहले से ही बहुत कर्ज था इसलिए अपना पेट भरने और घर चलाने के लिए बहुत छोटी उम्र में ही काम करना पड़ा।

शुरुआती दिनों की चुनौतियाँ -

यहाँ तक कि हेनरी जब 4 साल के थे तो उनके पैरेंट्स ने उनका स्कूल छुड़वा दिया और उन्हें अपने एक अमीर पड़ोसी के पास काम के लिए भेज दिया। जहाँ पर हेनरी अपने पड़ोसी के खेतों में चिड़ियाँ भगाने का काम करते थे। यहाँ तक कि कई दिन तो हेनरी और उनकी फैमिली को बिना खाए सोना पड़ता था। तभी कुछ सालों बाद 1972 में हेनरी के पिता की मृत्यु हो गई। हेनरी पढ़ना तो चाहते थे लेकिन अब स्थिति और दयनीय थी। 9 साल के हेनरी ने अब अखबार और चिट्ठियाँ डिलीवर करने का काम शुरू किया।

लेकिन अभी भी उनकी माँ मैरी पर लाखों का कर्ज था जिसकी वजह से उनकी माँ ने एक ऐसा फैसला किया। हेनरी की माँ इतनी मजबूर थी कि उन्होंने उन्हें बुलाया और कहा – बेटा अब मैं तुम्हें अपने साथ नहीं रख सकती, मेरे ऊपर बहुत सारा कर्ज है। यह कहकर उनकी माँ ने उन्हें एक ऐसे कपल के पास भेज दिया जो हेनरी जैसे बच्चों को अपने साथ रखना चाहते थे। लेकिन उन कपल्स के पास भी बहुत ज्यादा पैसे नहीं थे। यहाँ पर भी उन्हें खाने के नाम पर केवल दूध और ब्रेड ही मिलता था। हेनरी रोज रात को यही सोचते थे कि अगर हमें अपनी जिंदगी को बदलना है तो मुझे खुद नौकरी करनी होगी। एक रात हेनरी अपने आंटी के पास गए और उनसे कुछ पैसे उधार लेकर Great Northern Railway Works में ट्रेनिंग लेना शुरू कर दिया। लेकिन उनके पास अभी भी कोई घर नहीं था। तब हेनरी फिर से आंटी के पास गए और बोले – आंटी क्या मैं कुछ दिनों के लिए यहाँ रह सकता हूँ? लेकिन आंटी ने मना कर दिया।

इलेक्ट्रिक उपकरणों से ऑटोमोबाइल तक का सफर -

इसके कुछ ही दिनों बाद उन्हें जॉर्ज नाम का एक आदमी मिला, जिसके बेटे हेवलॉक के साथ हेनरी ट्रेनिंग कर रहे थे। तभी जॉर्ज ने हेनरी से कहा – हेनरी क्यों न तुम मेरे साथ मेरे घर में शिफ्ट हो जाओ, जहाँ एक वर्कशॉप भी है। हेनरी अब दिन में काम करते थे और रात के समय जॉर्ज के साथ कई इंजन और टूल्स के बारे में सीखते थे। फिर पैसे खत्म होते ही उन्होंने अपनी ट्रेनिंग बंद कर दी। 17 साल की उम्र में हेनरी की Electric Light and Power Company में जॉब लग गई। यहाँ उन्हें 1$/घंटा मिलता था लेकिन हेनरी अभी भी नई चीजें सीखते रहते थे। काम से आने के बाद वह इंजीनियरिंग की पढ़ाई करते थे। साथ ही वह काम को इतनी फोकस से करते थे कि कई बार तो वह खाना खाना भी भूल जाते थे।

काम से खुश होकर कंपनी के ओनर ने उन्हें नए ऑफिस में चीफ इंजीनियर बना दिया। 1882 में मात्र 19 साल की उम्र में उनका प्रमोशन हो गया था। लेकिन 2 साल बाद ही हेनरी जिस कंपनी में काम करते थे वह कंपनी कर्ज में डूब गई। लेकिन अब हेनरी ने डिसाइड किया कि अब वह खुद का बिजनेस करेंगे।

तब हेनरी ने अपने दोस्तों से मिलकर 1884 ईस्वी में सिर्फ 7000 रुपये से एक कंपनी स्टार्ट की जो इंजीनियरिंग के टूल्स बनाती थी। मैनचेस्टर में उन्होंने एक दुकान किराए पर ली थी, जिसके ऊपर एक कमरा था जिसमें ये दोनों रहते थे। कुछ ही समय बाद हेनरी ने एक बिजली से चलने वाला डोरबेल बनाया जो की मार्केट में लोगों को बहुत पसंद आया। इसके बाद उन्होंने इलेक्ट्रिक जनरेटर के साथ-साथ कई चीजें बनाई। 1894 तक कंपनी इतनी बड़ी हो गई कि ये इलेक्ट्रिक क्रेन्स भी बनाने लगे। इसी समय मार्किट में पेट्रोल से चलने वाली कार आ गई थी जिसमें हेनरी रुचि लेने लगे। 1901 में हेनरी ने एक कार खरीदी लेकिन घर लाने पर यह बंद हो गई।

फिर हेनरी इसे रिपेयर करने लगे तो उन्हें कार की डिजाइन पसंद नहीं आई। हेनरी ने पूरी कार को खोला और इसे फिर से नया डिजाइन दिया। लेकिन यह कार अब भी सही नहीं लग रही थी। बहुत देर परेशान होने के बाद हेनरी ने गुस्से में कहा – इस कबाड़ कार को बनाने से अच्छा मैं अपनी खुद की कार बनाऊंगा।

पहली कार का निर्माण: Royce 10 -

और सन 1903 में हेनरी ने खुद का पेट्रोल इंजन बना दिया। फिर इसके बाद हेनरी ने खुद की एक छोटी कार बना ली जिसका उन्होंने नाम रखा Royce 10। उन्होंने इस कार के 3 मॉडल्स बनाए, जिनमें से एक अपने पास, एक अपने पार्टनर क्लेयरमॉन्ट को दिया और एक मॉडल उन्होंने एक बिजनेसमैन को बेच दिया। जब उस बिजनेसमैन ने यह कार अपने मित्र चार्ल्स रोल्स को दिखाई तो वह हेनरी से मिलना चाहते थे क्योंकि चार्ल्स का भी कार और इंजन में बहुत इंटरेस्ट था। तब हेनरी और चार्ल्स के बीच मीटिंग हुई। तब चार्ल्स ने कहा, “तुम इसके जितने मॉडल्स बना सकते हो बनाओ, मैं इसे खरीदूंगा और आगे भी बेचूंगा।”

Rolls-Royce की स्थापना और सफलता-

सन 1906 में चार्ल्स रोल्स और हेनरी रॉयस दोनों ने मिलकर Rolls-Royce नाम की एक कंपनी स्टार्ट की। अपनी लगातार मेहनत से उन्होंने इस कार में दुनिया का सबसे मजबूत इंजन लगाया था।

1907 में अपनी डिजाइन और रिलायबिलिटी की वजह से इन्हें कई सारे अवार्ड्स मिले। और तो और राजा-महाराजा भी इस कार को खरीदने लगे। 1921 आते-आते इनकी पॉपुलरिटी इतनी बढ़ गई कि इनकी डिलीवरी का वेटिंग पीरियड 3 साल तक चल रहा था। तभी साल 1910 में चार्ल्स की उनकी प्लेन क्रैश में मृत्यु हो गई। चार्ल्स ने हेनरी को एरोप्लेन इंजन बनाने के लिए कहा था। लेकिन उनकी मृत्यु के बाद हेनरी बहुत अकेला महसूस कर रहे थे। लेकिन साल 1915 में हेनरी ने एक एरोप्लेन इंजन बनाया जो की वर्ल्ड के बेस्ट इंजन में से एक था। अपने लगातार काम करने की आदत और बेहतर से बेहतर की तलाश करने की आदत ने हेनरी को दुनिया की सबसे बेहतरीन कार की कंपनी का मालिक बना दिया। तभी दुर्भाग्यवश 1933 में हेनरी की मृत्यु हो गई। लेकिन अपने आखिरी साँस तक हेनरी ने अपने काम को नहीं छोड़ा। मृत्यु के कुछ समय पहले तक हेनरी अपनी कार के मॉडल्स का स्केच बना रहे थे।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back To Top