Uninor, MTS, Aircel, Videocon—ये कुछ ऐसी टेलीकॉम कंपनियाँ हैं जो वर्तमान समय में समाप्त हो चुकी हैं। अब सिर्फ तीन टेलीकॉम कंपनियाँ ही बची हैं। इनमें से ज्यादातर कंपनियों ने दिवालियापन (बैंक्रप्सी) के लिए आवेदन किया था। जब बाजार में प्रतिस्पर्धा कम होती है, तो बची हुई कंपनियाँ अपनी मर्जी से जितनी चाहें उतनी कीमतें बढ़ा सकती हैं, और आम आदमी के पास कुछ करने का विकल्प नहीं होता। यह सच है कि इतने बड़े देश में, जहाँ 70% जनसंख्या इंटरनेट का उपयोग कर रही है, किसी भी कंपनी की एकाधिकार स्थिति (मोनोपॉली) बहुत खतरनाक हो सकती है।
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ToggleARPU: टेलीकॉम कंपनियों की कीमतें बढ़ाने का असली कारण
आपने कई बार देखा होगा कि समय-समय पर टेलीकॉम कंपनियाँ अपनी मर्जी से कीमतें बढ़ा देती हैं। इसका पहला कारण मोनोपॉली है, और दूसरा कारण जो कंपनियाँ बता रही हैं, वह है ARPU—यानी प्रति उपयोगकर्ता औसत राजस्व (Average Revenue Per User)। जब टेलीकॉम कंपनियों के रिचार्ज की कीमतों में बढ़ोतरी की बात आती है, तो कंपनियों का कहना है कि भारत में ARPU बहुत कम है और यहाँ डेटा की कीमतें अत्यधिक सस्ती हैं। इसी वजह से ये कंपनियाँ एक ही दिन में 20% तक कीमतें बढ़ा देती हैं।
Jio और Airtel की कीमतों में वृद्धि का भारतीय उपभोक्ताओं पर असर
हाल ही में जब Jio और Airtel ने अपनी कीमतें बढ़ाईं, तो अनुमान लगाया गया कि पूरे देश की जनसंख्या पहले के मुकाबले ₹47,500 करोड़ रुपये अधिक खर्च करेगी। हालाँकि, भारत में वेतन वृद्धि दर 3-5% है, लेकिन ये कंपनियाँ कुछ ही सालों में अपने प्लान्स की कीमतों में वृद्धि कर देती हैं। इस स्थिति को सरकारी टेलीकॉम कंपनियाँ जैसे BSNL बेहतर नेटवर्क प्रदान करके कुछ हद तक कम कर सकती हैं। यदि हम 7-8 साल पहले की बात करें, तो भारत में 1 GB डेटा की कीमत ₹300 थी, लेकिन वर्तमान में यह कीमत लगभग ₹10 है।
टेलीकॉम कंपनियों की मार्केटिंग रणनीति या जरूरत?
कई लोगों का मानना है कि यह कंपनियों की मार्केटिंग रणनीति है—पहले लोगों को सस्ता डेटा देकर उन्हें इसकी आदत लगाना और फिर कीमतें बढ़ाकर अच्छा खासा मुनाफा कमाना। यह बात कुछ हद तक सही भी है। 2016 तक भारत की कुल जनसंख्या के केवल 18% लोग इंटरनेट का उपयोग करते थे, लेकिन वर्तमान में यह आंकड़ा 60% तक पहुंच गया है।
BSNL जैसी सरकारी टेलीकॉम कंपनियों की भूमिका
निजी कंपनियाँ अपने हिसाब से डेटा की कीमतें बढ़ा रही हैं। हाल ही में जब कई टेलीकॉम कंपनियों ने अपने प्लान की कीमत बढ़ाई, तो ऐसा लगा कि मार्केट लीडर BSNL वापस आता हुआ दिख रहा है। क्योंकि 5G एक ऐसी चीज है जिसकी जरूरत हर किसी को नहीं है। आखिर हम 1 GBps डेटा स्पीड का क्या करेंगे जब एक वीडियो 15 Mbps की स्पीड में आसानी से चल सकता है? हालाँकि कुछ लोगों को इसकी जरूरत है, लेकिन आम लोगों को इसकी आवश्यकता नहीं है। लोग कहते हैं कि अगर हमें 20 से 30 Mbps की स्पीड मिल जाए, तो वही काफी है। एक समय के बाद डेटा का उतना व्यावहारिक उपयोग नहीं होता, और यही कारण है कि BSNL को इतना समर्थन मिल रहा है। कश्मीर जैसे क्षेत्रों में प्रतिदिन 400-500 सिम BSNL में पोर्ट किए जा रहे हैं। रिपोर्ट्स के अनुसार, लगभग एक लाख लोगों ने अपना सिम BSNL में पोर्ट करा लिया है।
BSNL के सामने चुनौतियाँ:
हालाँकि, BSNL के लिए एक समस्या उत्पन्न हो रही है। जैसे-जैसे BSNL के सर्वर पर लोड बढ़ेगा, यदि इनके सर्वर को बढ़ाया नहीं गया, तो लोगों को बहुत कम स्पीड मिलेगी और नेटवर्क इतना धीमा हो जाएगा कि यह लगभग न के बराबर हो जाएगा। BSNL तभी प्रगति कर सकती है जब लोगों को तेज गति का नेटवर्क मिले।
Jio का IPO: भारतीय टेलीकॉम सेक्टर के लिए एक महत्वपूर्ण कदम
Jio, जिसने भारतीय टेलीकॉम सेक्टर में अपनी धाक जमाई है, अब शेयर बाजार में भी धमाल मचाने के लिए तैयार है। जब कोई बड़ी कंपनी अपना IPO (Initial Public Offering) लॉन्च करती है, तो निवेशकों में काफी उत्साह देखने को मिलता है। और अगर बात Jio जैसी बड़ी कंपनी की हो, तो यह उत्साह और भी बढ़ जाता है।
Jio का IPO निवेशकों के लिए एक बेहतरीन मौका है, और यह भारतीय शेयर बाजार में भी एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकता है। इस IPO के जरिए Jio अपने निवेशकों को मुनाफा देने के साथ-साथ अपने अगले विकास की दिशा में भी बड़ा कदम उठाने जा रहा है। इस ब्लॉग में हम जानेंगे कि Jio के IPO में निवेश करना क्यों फायदेमंद हो सकता है और इसमें कौन-कौन सी बातें ध्यान में रखनी चाहिए। Jio का IPO आपके निवेश के लिए एक शानदार अवसर साबित हो सकता है।